वीर सावरकर और बाबा साहेब अम्बेडकर वर्तमान समय के सबसे चर्चित नाम हैं। ये दोनों भारतीय इतिहास के ऐसे महान विभूतियां हैं जो अपने संघर्ष और त्याग के बूते पर हर पीढ़ी के प्रेरणास्रोत के रूप में विद्यमान रहेंगे। सावरकर और अम्बेडकर जी पर भारत तथा विश्व स्तर पर अनेक प्रकार के अध्ययन हो चुके हैं। सावरकर और अम्बेडकर जी ऐसे समय में पैदा हुए थे जिस कालखण्ड में भारत भूमि पर अनेक महान हस्तियों ने जन्म लिया था। भारतीय इतिहास के जानकर इस बात से पूर्णतः सहमत होंगे कि सावरकर और अम्बेडकर जी के समय में जितने महानुभवों ने जन्म लिया था, उन सबके कर्मों के अनुसार ही आज इतिहास में उनकी पहचान दर्ज हो चुकी है। संक्षिप्त में कहा जाए तो वे वर्तमान पीढ़ी के पथ प्रदर्शक सिद्ध हो चुके हैं तथा उनके विचार अलग-अलग धारा बनकर समाज में प्रवाहित हो रही हैं।
इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि सावरकर और अम्बेडकर जी अलग-अलग उद्देश्य से देश और समाज सेवा के क्षेत्र में उतरे थे। सावरकर जी भारत देश को अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानते थे और ऐसे हर व्यक्ति को अपना विरोधी समझते थे जो उनके विचार से अलग मत रखते थे। सावरकर राष्ट्र को सर्वोपरि मानते थे। राष्ट्र के हित की रक्षा के लिए वे किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार रहते थे। इस रूप में सावरकर जी हमारे दूसरे राष्ट्रवादी चिंतकों से कोसों आगे थे। इसीलिए सावरकर जी का नाम चरमपंथी विचारकों में शुमार किया जाता है। उनका नाम साम्प्रदायिक विचारकों की सूची में भी शामिल किया जाता है। सावरकर जी हिंदू राष्ट्र के पैरोकार थे, जिसका मतलब धर्म से नहीं बल्कि संस्कृति से था। इसके अतिरिक्त सावरकर जी का एक बहुत बड़ा व्यक्तित्व समाजसुधारक के रूप में भी निहित है। इन सब बिंदुओं को ध्यान में हुए यह कहा जा सकता है कि सावरकर जी पर अब तक हुए तमाम अध्ययनों के बावजूद भी उनकी संपूर्ण छवि आजतक उजागर नहीं हो पायी है। इसके लिए जरूरी है कि हम उन पर आगे और विस्तार से विचार विमर्श करें।
अब यह सवाल उठता है कि अम्बेडकर जी चूंकि सावरकर जी से भिन्न प्रवृत्ति के शख्सियत थे तो इन दोनों के बीच एक समालोचनामूलक अध्ययन की क्या तुक बनती है? इसका जवाब बहुत आसान है। ऐसा नहीं है कि अम्बेडकर और सावरक दो भिन्न छोर पर खड़े हैं तो उनमें कोई सामंजस्य ही नहीं है। हमें इसी दिशा में अपनी सोच को आगे बढ़ाना है तो नई चिंतन पद्धति विकसित करनी होगी। भले ही अम्बेडकर जी की छवि एक समाजसुधारक के रूप में अधिक प्रबल है लेकिन उन पर गहराई से अध्ययन करने वाले इस बात से पूर्णतः सहमत होंगे कि अम्बेडकर जी भी एक प्रखर राष्ट्रवादी विचारक थे। जिस प्रकार सावरकर जी प्रखर राष्ट्रवादी होने के साथ-साथ एक उत्तम समाज सुधारक भी थे, उसी प्रकार अम्बेडकर जी के जीवन का भी एक पहलू है जो उच्चकोटि के राष्ट्रवाद का द्योतक है। इस दृष्टि से इन दोनों महापुरुषों के अध्ययन करके हमारी भारतीय चिंतन परंपरा को एक नई दिशा की ओर अग्रसारित किया जा सकता है। सावरकर और अम्बेडकर का चिंतन किस दिशा में चलकर एक हो जाता है, इस विषय पर विचार-विमर्श करना आज के समय के लिए अत्यंत आवश्यक है। अम्बेडकर और सावरकर जी के विचार जहां एक बिंदु पर आकर टिकते हैं, वहीं से एक नई विचार परंपरा जन्म ले सकती है और आनेवाले दिनों में इसकी असीम संभावना है।
– डॉ. जाहिदुल दीवान
jahidignou@gmail.com
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