आज मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यकारी परिषद् (EC) के सदस्य प्रो. वीरेन्द्र सिंह नेगी जी का एक फेसबुक पोस्ट पढ़ा। अपने पोस्ट में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के विवेकानंद कॉलेज के 12 तदर्थ प्राध्यापकों की पुनर्युक्ति की पुष्टि की है। पिछले कुछ महीनों से एनडीटीएफ (NDTF) के अध्यक्ष प्रो. ए.के.भागी के नेतृत्व में प्रो. नेगी और उनकी टीम के तमाम सदस्य विवेकानंद कॉलेज के प्रताड़ित तदर्थ अध्यापकों को न्याय दिलाने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। हालांकि यह प्रो. भागी की टीम की सर्वोत्तम सफलता की कोई इकलौता मिसाल नहीं है। लेकिन मैं यहां एक दूसरी बात की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में जब से प्रो. भागी और प्रो. नेगी ने एनडीटीएफ की कमान संभाली है, तब से यह विश्वविद्यालय समस्या से समाधान की ओर बढ़ चला है। वर्षों से दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रमोशन का काम अटका हुआ था, भागी-नेगी की अगुवाई में वह काम भी अब पूरा होने को है। दिल्ली विश्वविद्यालय के अनेकों ऐसे शिक्षक होंगे जो बिना प्रमोशन का स्वाद चखे ही सेवानिवृत्त हो गए। लेकिन जिन लोगों के साथ कुछ अच्छा हो पाया है वे दिन-रात एनडीटीएफ की टीम को दुआएं दे रहे हैं। आगे प्रो. भागी और उनकी टीम को और भी कल्याणकारी कदम उठाने होंगे। उनसे मदद मिलने की आस में दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ एक बहुत बड़ा कमजोर तबका अब भी राह देख रही है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के तथाकथित एडहॉक हितैषी शिक्षक संगठनों ने प्रमोशन, तदर्थ प्राध्यापकों का समायोजन आदि मुद्दों पर आंदोलन करने का अनेक स्वांग रचा है। दरअसल उनका आंदोलन क्लास बंक करने के हथकंडे के अलावा और कुछ नहीं होता है। सिगरेट की धुएं के साथ दूसरों के सपनों को जलाने वाले शिक्षक नेताओं से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है। दिल्ली विश्वविद्यालय में सबको पता है कि किस प्रकार एक व्यक्ति पहले हाथ-पैर जोड़कर एडहॉक बनता है, फिर ऐसी भंवर में फँस जाता है कि जीवन भर उससे निकल नहीं पाता। अब उस गुनाहगार को कहां ढूंढे जिसने इस व्यवस्था की शुरुआत करवायी थी! लेकिन यहां दूसरे किस्म के गुनाहगार भी मौजूद हैं जिन्होंने वर्षों से एडहॉक प्राध्यापकों को धोखे में रखा है। मुझे तो इस बात की हैरानी होती है कि बार-बार झूठे सपने दिखाकर चुनाव जीतने वाले शिक्षक नेताओं के झांसे में तदर्थ प्राध्यपक आ कैसे जाते हैं? मानता हूं कुछ बेचारे मजबूर हैं; जिनकी मेहरबानी के बदौलत उनके परिवार को दाल-रोटी मिल रही है, उनके प्रति वफादारी तो बनती है। लेकिन कब तक चलेगा यह खूनी खेल? वफादारी के कारण बेघर होना कहां की समझदारी है?
मुझे प्रो. भागी और प्रो. नेगी के हवाले से पूरे एनडीटीएफ से यह निवेदन करना है कि आप लोग मंजिल के बहुत करीब पहुंच चुके हैं। जिस प्रकार आपने आज विवेकानंद कॉलेज में जीत हासिल की है, इससे यह प्रमाणित होता है कि आप लोगों की अगुवाई में, दिल्ली विश्वविद्यालय में अब बहुप्रतीक्षित स्थायी नियुक्ति भी शुरू हो सकती है। आज की तारीख में एनडीटीएफ के अलावा बाकी सारे शिक्षक संगठन दिल्ली विश्वविद्यालय में अप्रासंगिक हो चुके हैं। वैसे संगठनों का आजकल एक ही काम दिख रहा है- गाहे-बगाहे सोशल मीडिया में केवल मोदी सरकार की आलोचना। लेकिन लोगों को बेवकूफ बनाने वाली उनकी रणनीति का पर्दाफाश हो चुका है। देश की जनता गिरोहवादी राजनीति को अच्छे से समझ चुकी है। उन छद्म भेषी हितैषियों की मंशा और क्षमता दोनों पहचान चुके हैं। पिछले जुलाई (2020) में दिल्ली विश्वविद्यालय में जो आंदोलन हुआ था, उससे लोगों को बड़ी उम्मीदे थीं। लेकिन वह भी जब फूस्स हो गया तो एडहॉकों की रही-सही आशाएं भी खत्म हो गयी। अब एक ही आस है- अगर दिल्ली विश्वविद्यालय में कोई स्थायी नियुक्ति करा सकते हैं, तो वह है एनडीटीएफ। (लेखन आगे भी जारी रहेगा…)
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Satya vachan
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